सहयोग
युह लगता है जैसे कोई खुबसूरत सहयोग है,
जो समझना भी नहीं चाहतीं, ओर उसके सिवा कुछ और लिखना भी नहीं पसंद है,
टूटते तारों को देख कर जो शिद्द्त से उसे मांगलु,
फिर वास्तविकता को भी अपनाउ,
पहेल न कभी उसने की, ना कभी मैं करु,
लेकिन ख्वाहिश मैं सिर्फ उसकी करुँ,
कोशिशों का मोहताज नहीं था,
गलतियों की गुंजाइश फिर क्या,
खुब चाहत थी,
लेकिन पता भी था कि उसे तो जाना ही था एक दिन!
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